कोरोना वायरस के विश्वव्यापी प्रकोप से क्रूड के घटते मूल्य ने एथनॉल बनाने वाली शुगर मिलों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। घरेलू ऑयल कंपनियों ने पेट्रोल में एथनॉल के मिश्रण को घटा दिया हैं। इसके चलते एथनॉल की खरीद ठप हो गई है। इसका असर शुगर मिलों पर बहुत बुरा पड़ रहा है।
उत्पादन के बावजूद एथनॉल की मांग न होने से शुगर मिलों के लिए उसका स्टॉक करना बड़ी चुनौती बन गया है। मिलों के पास इस तरह एथनॉल के भंडारण की सुविधा नहीं होने से हालात बिगड़ सकते हैं। जबकि मिलों ने अपने यहां एथनॉल उत्पादन को बढ़ाने के लिए निवेश में वृद्धि की है।
फिलहाल ऑयल कंपनियों को पेट्रोल में 10 फीसद तक एथनॉल मिलाने का लक्ष्य दिया गया है। लॉकडाउन की वजह से देश में पेट्रोल की मांग में भी भारी गिरावट के चलते ऑयल कंपनियों में एथनॉल की मांग न के बराबर रह गई है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने ऑयल कंपनियों से एथनॉल खरीदने और उसे अपने डिपो में रखने की मांग की है, जिससे मिलों की भंडारण संबंधी समस्या का समाधान हो सके।
पेट्रोल में 10 फीसद तक एथनॉल मिलने का लक्ष्य देशभर में दिया गया है। ऑयल कंपनियों के डिपो मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ, राजस्थान, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल में हैं। इन डिपो में एथनॉल का भंडारण किया जाता रहा है। इसी के मद्देनजर इस्मा ने सभी ऑयल कंपनियों से आग्रह किया है कि वे शुगर मिलों के एथनॉल को तत्काल खरीदें, क्योंकि उनके पास इसके भंडारण की सुविधा बहुत सीमित है।
इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा को विश्वास है कि ऑयल कंपनियां शुगर मिलों के तैयार एथनॉल को खरीदने में देरी नहीं लगायेंगी। कंपनियों ने आश्वस्त किया है कि जल्दी ही एथनॉल भंडारण की अतिरिक्त सुविधा मुहैया कराई जाएगी। इसके लिए कंपनियां उचित जगहों पर डिपो चिन्हित कर बतायेंगी। उन्होंने बताया कि चालू साल के लिए जितने एथनॉल सप्लाई का कांट्रैक्ट किया गया था, उतनी मात्रा में एथनॉल का उत्पादन मिलों ने पहले ही कर दिया है।
वर्ष 2018 में घरेलू ऑयल कंपनियों ने शुगर मिलों से पेट्रोल में एथनॉल मिलाने के प्रावधान के तहत 3.14 बिलियन लीटर एथनॉल आपूर्ति का अनुबंध किया था। वर्ष 2019 में 3.3 बिलियन लीटर एथनॉल की आपूर्ति का अनुबंध किया गया था। पिछले महीने आयल कंपनियों की ओर से 2.53 बिलियन लीटर एथनाल खरीदने का अनुबंध किया गया है।
पिछले कई सालों के बाद शुगर मिलों में चीनी का उत्पादन सही पटरी पर लौट रहा था। लाकडाउन के साथ ही मिलों के समक्ष लाइम, सल्फर, बोरी और फास्फोरिक एसिड जैसे कई वस्तुओं की कमी हो गई। इसका असर पटरी पर लौट रहे चीनी उत्पादन पर भी देखने को मिल सकता है।
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